मरीज की सामाजिक स्थिति प्रभावित करता है सोरायसिस

मरीज की सामाजिक स्थिति प्रभावित करता है सोरायसिस

सुमन कुमार

सोरायसिस त्वचा की ऐसी बीमारी है जो अधिकतर मामलों में जानलेवा भले ही न हो मगर इसके शिकार लोगों की सामाजिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। इस बीमारी में शरीर के अलग-अलग हिस्सों में त्वचा पर गोल-गोल धब्बे बन जाते हैं। हाथों की कोहनियां, एड़ी, नाखून, सिर की त्वचा इससे सबसे अधिक प्रभावित होती है मगर बीमारी के कुछ मामलों में त्वचा के अलावा यह शरीर के किसी भी हिस्से पर अपना असर डालती है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार दुनिया की आबादी का 1 से 3 प्रतिशत हिस्सा इस बीमारी से पीड़ित है।

वरिष्‍ठ होम्‍योपैथ डॉक्‍टर बलबीर कसाना कहते हैं कि ये बीमारी क्‍यों होती है इस बारे में चिकित्‍सा विज्ञान को बहुत अधिक जानकारी नहीं है मगर इसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी बीमारी माना जाता है। परिवार में पति-पत्नी में से किसी को यदि यह बीमारी हो तो उनके किसी एक बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका 8 प्रतिशत होती है और अगर पति-पत्नी दोनों इससे पीड़ित हों तो यही आशंका 41 प्रतिशत हो जाती है।

तनाव, शारीरिक और मानसिक आघात से इस बीमारी को बढ़ाता मिलता है। बीमारी का पता सामान्यतः त्वचा को देखकर लगाया जाता है मगर कुछ मामलों में त्वचा की बायोप्सी करने की जरूरत पड़ सकती है। बायोप्सी से यह पता चलता है कि बीमारी सोरायसिस ही है या कोई अन्य। एक बात जिसका ध्यान मरीजों को रखना चाहिए, कि यदि यह बीमारी ज्यादा तेजी से फैली तो जानलेवा हो सकती है मगर ऐसे मामले बिरले ही होते हैं।

इस बीमारी का शारीरिक से अधिक मानसिक असर पड़ता है। इसके शिकार लोग त्वचा खराब दिखने के कारण शुरू में लोगों से कतराना ओर फिर घर से निलकना ही बंद कर देते हैं। जाहिर है, उनका सामाजिक जीवन इससे बुरी तरह प्रभावित होता है।

डॉक्‍टर कसाना कहते हैं कि होम्योपैथी में सोरायसिस का प्रभावी इलाज मौजूद है। सही अर्थों में कहा जाए तो होम्योपैथी में ही इसका इलाज है मगर हां,  इलाज में बेहद लंबा समय लगता है। सोरायसिस के कई प्रकार हैं मगर तीन सबसे आम हैं।

पहला सोरायसिस वल्गरिस है जिसकी पहचान आमतौर पर जली हुई त्वचा के विस्तृत हिस्से के रूप में होती है और यह चांदी जैसे सफेदी ली हुई त्वचा से घिरी रहती है। दूसरा प्रकार है हाथ और पैरों की उंगलियों पर। तीसरा श्रेणी है सोरायसिस आयटिस। इसका असर होता है शरीर के हर अंग पर मगर इसमें भी यह हाथ और पैरों की उंगलियों के जोड़ों पर सबसे अधिक असर डालती है। एकबार यह बीमारी हो जाए तो कई चीजों से इसे बढ़ावा मिलता है। यह अधिक फैलने लगती है। इसी प्रकार सिगरेट, तम्बाकू और तनाव के कारण बीमारी में वृद्धि होती है। सबसे अहम बात है कुछ दवाइयों के इस्तेमाल से इसमें बढ़ोतरी। मलेरिया और कुछ दर्दनाशक दवाइयों से इस बीमारी को बढ़ावा मिलता है।

अगर इसके इलाज की बात करें तो होम्योपैथी में इसका इलाज जिन दवाइयों से किया जाता है वह सोरिनम, नेट्म मूर, लेडम पाल, ग्रेफाइट्स आदि मुख्य हैं मगर जैसा कि पहले बताया गया है इस बीमारी के इलाज में बेहद लंबा समय लगता है। इसलिए मरीजों को योग्य होम्यापैथिक चिकित्सक की देख-रेख में नियमित दवा लेते हुए धैर्यपूर्वक इलाज करवाना चाहिए।

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